ई शुल्क व्यवस्था का सबसे ज़्यादा असर भारतीय पेशेवरों और भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा
वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुक्रवार को एक नया आदेश जारी करते हुए एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम में बड़ा बदलाव किया है। अब इस वीज़ा के आवेदन पर कंपनियों को हर साल 1 लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) शुल्क चुकाना होगा।
व्हाइट हाउस में आयोजित कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ट्रम्प के सामने अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने इस बदलाव की घोषणा की। उन्होंने कहा, “सभी बड़ी कंपनियां इसके लिए तैयार हैं। अब कंपनियों के लिए कम अनुभव वाले विदेशी कर्मचारियों को रखना फायदेमंद नहीं होगा। यदि किसी कंपनी को सचमुच किसी उच्च कुशल इंजीनियर की ज़रूरत है, तो वह इसके लिए यह शुल्क चुका सकती है।”
क्या है H-1B वीज़ा?
एच-1बी वीज़ा अमेरिका का वह कार्यक्रम है, जिसके ज़रिये विदेशी पेशेवरों को उच्च कौशल वाली नौकरियों के लिए काम पर रखा जाता है। इसका उद्देश्य दुनियाभर से बेहतरीन प्रतिभाओं को आकर्षित करना था। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस कार्यक्रम का इस्तेमाल कंपनियां अक्सर कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को लाने के लिए करती रही हैं।
भारतीयों पर सबसे बड़ा असर
अमेरिकी आंकड़ों के अनुसार, एच-1बी वीज़ा पाने वालों में करीब 71% भारतीय होते हैं, जबकि चीन दूसरे स्थान पर है। ऐसे में नई शुल्क व्यवस्था का सबसे ज़्यादा असर भारतीय पेशेवरों और भारतीय आईटी कंपनियों पर पड़ेगा। इस साल अमेज़न, टाटा कंसल्टेंसी, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और एप्पल जैसी कंपनियों को सबसे ज़्यादा वीज़ा मंज़ूर हुए हैं।
विवाद और आशंकाएँ
नई नीति के बाद छोटे और मध्यम स्तर की कंपनियों पर भारी बोझ पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धा क्षमता प्रभावित हो सकती है, क्योंकि कई प्रतिभाशाली विदेशी अब अन्य देशों का रुख कर सकते हैं।
वहीं कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े शुल्क को लागू करने को लेकर अदालतों में चुनौती भी दी जा सकती है।













































































