3,अक्टूबर
With the start of the paddy harvesting season, incidents of stubble burning in Punjab and Haryana have once again begun to rise. Experts say that stubble burning not only affects these states but also pushes air pollution levels to dangerous limits in major cities like Chandigarh and Delhi.

धान की कटाई का सीजन शुरू होते ही पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएँ फिर बढ़ने लगी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाना न केवल इन राज्यों में, बल्कि चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना देता है।
पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) की संयुक्त टीम उपग्रह आंकड़ों की मदद से रोजाना पराली जलाने की घटनाओं पर नज़र रख रही है। टीम की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 23 से 29 सितंबर के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के लगभग 150 मामले दर्ज किए गए। इनमें सबसे ज़्यादा मामले पंजाब से सामने आए हैं, जबकि हरियाणा में तुलनात्मक रूप से कम घटनाएँ हुई हैं।
इस मॉनिटरिंग पहल का नेतृत्व पीजीआईएमईआर के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रो. रविंद्र खैवाल और पीयू के पर्यावरण विभाग की डॉ. सुमन मोर कर रही हैं। प्रो. खैवाल के अनुसार, अच्छी बात यह है कि साल 2021 की तुलना में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में लगभग 80% की कमी आई है।
हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई तेज़ होने पर पराली जलाने की घटनाएँ और अधिक बढ़ सकती हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर गंभीर हो जाएगा।
पंजाब-हरियाणा में पराली जलाना बढ़ा, विशेषज्ञों ने चेताया प्रदूषण और बढ़ेगा
धान की कटाई का सीजन शुरू होते ही पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएँ फिर बढ़ने लगी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पराली जलाना न केवल इन राज्यों में, बल्कि चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना देता है।
पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) की संयुक्त टीम उपग्रह आंकड़ों की मदद से रोजाना पराली जलाने की घटनाओं पर नज़र रख रही है। टीम की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, 23 से 29 सितंबर के बीच पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने के लगभग 150 मामले दर्ज किए गए। इनमें सबसे ज़्यादा मामले पंजाब से सामने आए हैं, जबकि हरियाणा में तुलनात्मक रूप से कम घटनाएँ हुई हैं।
इस मॉनिटरिंग पहल का नेतृत्व पीजीआईएमईआर के सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रो. रविंद्र खैवाल और पीयू के पर्यावरण विभाग की डॉ. सुमन मोर कर रही हैं। प्रो. खैवाल के अनुसार, अच्छी बात यह है कि साल 2021 की तुलना में इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में लगभग 80% की कमी आई है।
हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई तेज़ होने पर पराली जलाने की घटनाएँ और अधिक बढ़ सकती हैं, जिससे प्रदूषण का स्तर गंभीर हो जाएगा।


















































































