Vande Bharat 24 Exclusive
लुधियाना हल्का वेस्ट के उपचुनाव में कांग्रेस को मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर गुटबाजी एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह हार कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई का नतीजा है, जिसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव के समय हुई थी, जब प्रदेश अध्यक्ष राजा वडिंग ने कथित तौर पर भरत भूषण आशु की लोकसभा टिकट कटवा दी थी। इसके बाद आशु ने भी राजा वडिंग के लिए प्रचार से दूरी बनाए रखी थी।
अब जब हल्का वेस्ट में उपचुनाव हुआ और कांग्रेस ने आशु को उम्मीदवार बनाया, तो पार्टी में दो खेमों की खींचतान और खुलकर सामने आ गई। सबसे पहले, प्रचार सामग्री से लेकर होर्डिंग्स तक में राजा वडिंग की तस्वीर नदारद रही। इसके बाद जब प्रदेश अध्यक्ष लुधियाना पहुंचे और स्थानीय नेताओं सुरेंद्र डाबर, राकेश पांडे, संजय तलवाड़, बैंस बंधु, कुलदीप वैद और जस्सी खंगुड़ा के साथ आशु से मिलने गए, तो उन्हें बिना मुलाकात किए ही लौटना पड़ा।
हालांकि हाईकमान के निर्देश पर राजा वडिंग नामांकन के समय और प्रेस कॉन्फ्रेंस में आशु के साथ नज़र आए, लेकिन इसके बाद भी आशु ने उनसे कोई विशेष संवाद नहीं किया। नतीजा यह रहा कि रोड शो में वडिंग भी शामिल नहीं हुए। इसी तरह, लुधियाना में मौजूद होने के बावजूद कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी प्रचार से दूर रहे।
राजा वडिंग के विरोधी माने जाने वाले चरणजीत सिंह चन्नी, राणा गुरजीत सिंह, प्रगट सिंह, राजकुमार वेरका और किक्की ढिल्लों जैसे नेता आशु के समर्थन में जुटे रहे। वहीं चुनाव परिणाम आने के बाद सोशल मीडिया पर राजा वडिंग की विक्ट्री साइन वाली एक पोस्ट ने पार्टी के अंदर खलबली मचा दी, जिसे बाद में हटा लिया गया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आशु ने कहा, “अगर ऐसी कोई पोस्ट डाली गई है तो यह छोटी सोच का नतीजा है।”

बैंस का हमला – अहंकार ने हराया कांग्रेस को
उधर, उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की हार के बाद पूर्व विधायक सिमरजीत बैंस ने भी भरत भूषण आशु पर तीखा हमला बोला। बैंस ने कहा कि आशु के साथ उनके भाई जैसे रिश्ते रहे हैं, लेकिन आशु ने उन्हें कांग्रेस में शामिल करने का विरोध किया था। हल्का वेस्ट उपचुनाव में वह खुद आशु के घर समर्थन देने गए थे, लेकिन उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी गई।
बैंस ने कहा, “इज्जत देना तो दूर, मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया गया जैसे मैं छूत की बीमारी हूं। अगर हम सब एकजुट होकर प्रचार करते तो कम से कम 5 हजार वोट और मिल सकते थे, जो जीत का अंतर बन सकते थे।” उन्होंने आशु पर अहंकार में डूबे होने का आरोप लगाते हुए कहा कि “जब बुद्धि बंद हो जाती है तो ऐसे फैसले लिए जाते हैं।”
बैंस ने राहुल गांधी के बयान का हवाला देते हुए कहा कि “अब समय आ गया है कि लंगड़े और बाराती घोड़े बदले जाएं। कांग्रेस हाईकमान को हल्का वेस्ट के हालात को देखते हुए बड़े बदलाव करने होंगे।”
हल्का वेस्ट उपचुनाव की हार कांग्रेस के लिए केवल एक चुनावी झटका नहीं, बल्कि आंतरिक असंतुलन और नेतृत्व संकट की एक चेतावनी है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब नेतृत्व को एकजुट करना और गुटबाजी से बाहर निकलना है।

Author: Harsh Sharma
Journalist